पुलिस ने आठ महीने की हिरासत के बाद चार दिन पहले एक संदिग्ध चीनीspy pigeon को मुक्त कर रिहा कर दिया कबूतर को मई 2023 में मुंबई बंदरगाह के पास पकड़ा गया था जिसके पैरों में दो अंगूठियां बंधी हुई थीं जिन पर चीनी भाषा में कुछ शब्द लिखे हुए थे पुलिस को संदेह था कि यह spy pigeonमें शामिल था और इसे अपने कब्जे में ले लिया बाद में इसे मुंबई के बाई सकरबाई दिनशॉ पेटिट हॉस्पिटल फॉर एनिमल्स में भेज दिया कबूतर को अंतत तब आजाद कर दिया गया जब यह पाया गया कि वो ताइवान में रेसिंग में भाग लेता था और ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान यह उड़ गया और भारत आ गया
spy pigeon यह पहली बार नहीं है कि किसी कबूतर को जासूसी के आरोप में हिरासत में लिया गया
हो मार्च 2023 में ओडिशा के पुरी में दो कबूतरों को जासूसी के संदेह में पकड़ा गया था एक कबूतर के पैरों में टैग लगे हुए थे एक टैग पर रेड्डी वीएसपी डीएन खुदा हुआ था दूसरे कबूतर के पास ऐसे उपकरण थे जो कैमरे की तरह दिखते थे और उसमें एक माइक्रोचिप लगी हुई थी
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐतिहासिक रूप से कबूतर वह पक्षी रहे हैं जिनका इस्तेमाल spy pigeon के लिए किया जाता रहा है अंतररराष्ट्रीय जासूस संग्रहालय की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कबूतरों पर छोटे कैमरे लगे हुए थे और उन्हें दुश्मन के इलाके में छोड़ दिया गया था जब पक्षी दुश्मन के इलाके में उड़ रहा होता था तो छोटे से कैमरे से इसे क्लिक कर लेता था t
अपनी गति और मौसम की परवाह किए बिना बेस पर लौटने की क्षमता के कारण वे दुश्मन देश में संदेश पहुंचाने के भी प्रभारी थे संग्रहालय ने कहा कि इस पद्धति की सफलता दर का मतलब है कि 95 फीसदी spy pigeon ने अपनी डिलीवरी पूरी कर ली और 1950 के दशक तक जासूसी के लिए उनका इस्तेमाल जारी रहा
प्रथम विश्व युद्ध में चेर अमी नाम का एक spy pigeon काफी मशहूर हुआ था
उसका अंतिम मिशन 14 अक्टूबर 1918 को था जिसमें उसने जर्मनों के खिलाफ लड़ाई में एक घिरी हुई फ्रांस की बटालियन के 194 सैनिकों को बचाने में मदद की थी दुश्मन की गोलीबारी में चेर अमी को पैर और छाती में गोली लग गई लेकिन वह संदेश लेकर अपने मचान तक पहुंचने में कामयाब रहा क्योंकि वह उसके घायल पैर में लटक गया था अपने मिशन के दौरान लगी चोटों के परिणामस्वरूप 13 जून 1919 को चेर अमी की मृत्यु हो गई इसे मरणोपरांत अन्य पुरस्कारों के साथ किसी भी बहादुर नायक को दिये जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार फ्रेंच क्राइक्स डी गुएरे विद पाम से सम्मानित किया गया
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हाल के वर्षों में कबूतरों के अलावा अन्य जानवरों का भी जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है
शीत युद्ध ने कई सरकारों को अपने जासूसी कार्यक्रमों में कई जानवरों को शामिल करने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया उनमें एक डॉल्फिन थी जिसे एक पत्रिका के अनुसार 1960 के दशक से अमेरिकी नौसेना द्वारा पनडुब्बियों और पानी के नीचें की खदानों का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है
He has 18 years of experience in journalism. Currently he is the Editor in Chief of Samar India Media Group. He lives in Amroha, Uttar Pradesh. For contact samarindia22@gmail.com