Mohammed Shamiउत्तर प्रदेश के अमरोहा के लोकल टूर्नामेंट में तौसीफ अली नाम के एक तेज गेंदबाज का बोलबाला था।
Mohammed Shami तौसीफ तेज गेंदबाजी का शौक और हुनर दोनो रखते थे। लोग बाग सलाह भी देते कि क्लब में जाओ, ट्रेनिंग करो डोमेस्टिक में जा सकते हो। पर तौसीफ अली किसान परिवार से थे, डोमेस्टिक या नेशनल के लायक तैयारी के लिए न पैसे थे, ना ही उम्र बची थी। एक समय आया जब तौसीफ अली ने स्वीकार कर लिया कि शायद ये खेती किसानी ही उनका मुकद्दर है, प्रोफेशनल क्रिकेट के लिए देर हो चुकी है।
तौसीफ अली भारतीय टीम के फास्ट बॉलर का सपना दिल में दफन करके अपनी आम जिंदगी में लौट आए। Mohammed Shami
शादी हुई, खेती किसानी से परिवार पाला। पांच बेटे हुए, और सबके अंदर क्रिकेट को लेकर दीवानगी। तौसीफ अली को मालूम था कि उनसे कहा कहा गलती हुई थी, क्या क्या नही हुआ जिसकी वजह से उन्हें अपने सपने मारने पड़े। वो अपने बच्चो के साथ ऐसा कुछ नही होने देना चाहते थे। पंद्रह साल तक अपने बेटे को गेंदबाज बनने के लिए खुद ट्रेन करते रहे, अपने तजरबे अपनी गलतियों का निचोड़ उन्होंने अपने बेटे की राह में रख दिए। बेटे को बस चलना था और वो हासिल करना था जिसे हासिल करने की जद्दोजहद का मौका भी उसके अब्बू को हासिल नही हुआ था।
पंद्रह साल की उम्र तक बेटे को ट्रेन करने के बाद Mohammed Shami
तौसीफ अली अपनी सारी जमा पूंजी इकट्ठा करके अपने बेटे को लेकर मुरादाबाद की एक क्रिकेट एकेडमी में कोच बदरुद्दीन के पास लेकर गए। कोच के सामने बेटे ने गेंद फेंकना शुरू किया तो बदरुद्दीन ने तुरंत उसे अपना शागिर्द कुबूल कर लिया। वो लड़का इस कदर मेहनती था कि उसने एक दिन भी ट्रेनिंग का नागा नही किया,मुरादाबाद में ट्रेनिंग के दौरान अगर कोई मैच खत्म होता तो वो लड़का पुरानी इस्तेमाल हुई गेंद मांगने खड़ा हो जाता, वजह पूछी गई तो बताया कि इन पुरानी गेंदों से मैं रिवर्स स्विंग की प्रैक्टिस करूंगा।
Mohammed Shami बदरुद्दीन को पूरा यकीन था कि इस लड़के को अंडर 19 के ट्रायल में तो सिलेक्टर उठा ही लेंगे।
इसी उम्मीद के साथ शमी ने ट्रायल दिया, सोच बदरुद्दीन के मुताबिक सिलेक्टर के पक्षपातपूर्ण रवैए के कारण शमी को मौका नहीं दिया गया। बदरुद्दीन से कहा गया कि अगले साल आइए इसे लेकर, लड़के में जान है, कब तक दूर रखेंगे सिलेक्टर इसे इंडियन कैप से। बदरुद्दीन दूर दर्शी आदमी थे, बोले इस लड़के का एक साल और दाव पर नही लगाना है, उन्होंने लड़के के पिता तौसीफ अली से बात की और कहा कि इसे आप कलकत्ता भेजिए। वहा क्लब खेलेगा तो आज नही कल स्टेट टीम में आ ही जायेगा। तौसीफ अली के पास ये जुआ खेलने की सिर्फ एक वजह थी अपने बेटे की काबिलियत और जुनून पर उनका भरोसा।
कलकत्ता आकर उस लड़के ने एक क्लब ज्वाइन कर लिया,पर स्टेट और नेशनल टीम का रास्ता दूर भी था और मुश्किल भी।
जुनून के भरोसे वो बंगाल तो पहुंच गया, पर जुनून न तो पेट भरता है न सर पर छत रखता है।पर दुनिया में ऐसे लोगो की कमी नही जो जुनून और काबिलियत ही ढूढते है लोगो में,ऐसे ही एक शख्स थे देवव्रत दास, जो की उस वक्त बंगाल क्रिकेट के असिस्टेंट सेकेट्री की हैसियत पर थे। वो उस लड़के की काबिलियत से इतने इंप्रेस हुए कि कलकत्ता में बेघर उस लड़के को अपने साथ रहने के लिए रख लिया।
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फिर उन्होंने बंगाल के एक चयनकर्ता बनर्जी को उस लड़के की प्रतिभा पर नजर रखने को कहा।
बनर्जी ने Mohammed Shami को गेंद फेंकते देखा और उसे बंगाल की अंडर 22 की टीम में सिलेक्ट कर लिया। देवदत्त दास से जब उस लड़के पर ऐसी मेहरबानी की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि “इस लड़के को रूपया पैसा नही चाहिए,इसे बस एक चीज नजर आती है वो है पिच के आखिर में गड़े हुए तीन स्टंप। स्टंप से गेंद की टकराने की आवाज उस लड़के को इतनी पसंद है कि उसके ज्यादातर विकेट बोल्ड आउट ही है।”
वहा से निकलकर उस लड़के ने मोहन बागान क्लब ज्वाइन किया, Mohammed Shami
वहा ईडन गार्डन के नेट्स में उसने सौरव गांगुली को गेंदबाजी की। सौरव के साथ भी वही हुआ, जो अब तक हर उस इंसान के साथ हो रहा था जो उस लड़के को गेंद फेंकते हुए देख रहा था। गांगुली इंप्रेस हुए और फिर उनकी रिकमेंडेशन परMohammed Shami को बंगाल की 2010–11 की रणजी टीम में चुन लिया गया। कुछ साल की मेहनत और जद्दोजहद के बाद 6 जनवरी 2013 के दिन पाकिस्तान के खिलाफ इस लड़के को इंडियन टीम की डेब्यू कैप दी गई।
जिसे पहनने के बाद आज तक वो लड़का उस टोपी नंबर 195 का रुतबा दिन ब दिन बढ़ाए जा रहा है।
हजारों दर्शको के बीच में, वो लड़का पूरे दम के साथ जब दौड़ना शुरू करता था तो उसके अंदर एक ही लालच रहता, किसी तरह गेंद स्टंप को लगे और वो टक का साउंड आए जिसे सुनकर ही इतने साल वो सांस लेता रहा है। जिंदगी की तमाम उतार चढ़ाव, मुश्किलों परेशानियों के बावजूद आज भी, अमरोहा के तेज गेंदबाज तौसीफ अली का बेटा Mohammed Shami, जर्सी नंबर 11 पहन कर जब रनअप पर दौड़ना शुरू करता है, तो उसके पीछे पीछे उसके अब्बू का सपना, कोच बदरुद्दीन की लगन, देवदत्त दास की इंसानियत सब कुछ साथ साथ चलता है दौड़ता है।
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रेहान अहमद
He has 18 years of experience in journalism. Currently he is the Editor in Chief of Samar India Media Group. He lives in Amroha, Uttar Pradesh. For contact samarindia22@gmail.com