Bundelkhand:बुंदेलखंड के सुपर स्टार हास्य कलाकार गोविंद सिंह गुल नही रहे।

Bundelkhand: के सुपर स्टार हास्य कलाकार गोविंद सिंह गुल नही रहे।
गिरजा शंकर अग्रवाल की रिपोर्ट – झांसी Bundelkhand समाचार – गोविन्द सिंह गुल एक ऐसा नाम हैं। जो अस्सी नब्बे के दशक में स्टारडम की एक मिसाल हुआ करता था। समूचे Bundelkhand के गांव गांव शहर शहर, हर गली हर मुहल्ले में पान के खोखे खोमचों पर हर जगह गुल साहब बुन्देली चुटकलों की एक अनूठी शैली, अजीबो गरीब प्रस्तुति से अपने चाहने वालों के दिलों पर राज किया करते थे।
लाइव कार्यक्रमों में केवल और केवल गुल साहब ही डिमांड में रहते।
अमूमन गीत संगीत ऑर्केस्ट्रा के कार्यक्रमों में स्टेंडअप कॉमेडियन खाली समय में फिलर के रूप में आते थे।परन्तु गुल साहब के कार्यक्रमों में प्रायः उल्टा ही होता था और गायक कलाकार बतौर फिलर बुलाए जाते रहें। एक समय था जब टी सीरीज, कन्हैया कैसेट्स, गोल्डन , सोना समूह द्वारा उनके सैकड़ों एल्बम निकला करते थे। Bundelkhand और आसपास के क्षेत्रों में सुबह शाम केवल गुल साहब ही सुने जाते रहे। एक वाकया याद आता है।
एक बार प्रसिद्ध भोजपुरी गायक और वर्तमान में भाजपा सांसद मनोज तिवारी,
गुलशन कुमार के दफ़्तर के बाहर गुलशन कुमार से मिलने प्रतीक्षा सूची में थे और अंदर गुलशन कुमार गुल साहब के साथ आगामी एल्बम की चर्चा में मशगूल थे। जो स्टारडम, Bundelkhand में गुल साहब को नसीब हुई। जो प्यार गुल साहब को मिला। शायद ही किसी को मिल पाए। बतौर मिमिक्री आर्टिस्ट गुल साहब का कोई सानी नहीं रहा। अनेकों तात्कालिक अभिनेताओं की हुबहू कॉपी किया करते थे गुल साहब शनै शनै ऑडियो वीडियो कैसेट्स सीडी डीवीडी चलन से बाहर हुए और गुल साहब भी एक समय ऐसा आया कि गुल साहब गुमनामी की धुंध में ओझल हो गए।
बस उनके मिलने वाले कुछ खास कलाकार साथी मिलते मिलाते रहे।
सीपरी किराना मार्केट स्थित Bundelkhand फिल्म निर्देशक लेखक अजय साहू की आटा चक्की पर प्रायः बैठे मिलते और अजय साहू सदैव उनकी मदद को तत्पर रहते। गुल साहब के जन्म और जन्मदाता मां बाप के विषय में कोई ठोस मालूमात नहीं है। स्वयं गुल साहब बताते रहे कि वह नदी किनारे चीथड़ों में लिपटे एक तांगे वाले को मिले। उन्होंने ही इन्हें पाला पोसा और वही इनके अभिभावक रहे। कालांतर में गुल साहब ने दो विवाह किए और अपने पीछे 6 बच्चों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए हैं।

गुल साहब आर्थिक रूप से गुल साहब भले ही कमजोर रहे हों
परन्तु उनके चाहने वाले कभी कम न हुए।गुल साहब ने स्थानीय Bundelkhand फिल्मों में लेखन, संवाद और हास्य अभिनय कर सभी को गुदगुदाया।संवाद लेखन में उनका कोई सानी नहीं था। उनकी लिखी शेर और शायरी की पांडुलिपि जिसे वह प्रकाशित कराना चाहते थे और हम प्रयासरत भी थे। परन्तु उनके पास वक्त बहुत कम था। इससे हम अनजान थे। शायद उनकी अंतिम इच्छा अतिशीघ्र एक पुस्तक के बीच में हम सभी के बीच होगी।
निसंदेह इस पुस्तक में गुल साहब ने अपने जीवन के तमाम अनछुए पलों को छुआ
और अपना सारा दर्द उड़ेल कर अपनी जिंदगी को अभिव्यक्त किया है।अंतिम समय में गुल साहब के परिजनों के अलावा नवीन श्रीवास्तव, राशि श्रीवास्तव , रजनीश श्रीवास्तव आदि अनेकों कलाकार और जागरूक जिम्मेदार झाँसीवासी उनके साथ रहे।परस्पर सहयोग से उनके लिए आवश्यक व्यवस्थाएं मुहैया कराईं।आज गुल साहब हमारे बीच नहीं रहे, बुन्देली कला जगत में एक अपूर्णीय रिक्तता एक खालीपन हमें हमेशा कचोटता रहेगा जिसकी भरपाई अब सम्भव नही।Bundelkhand