हाल ही में सोशल मीडिया पर एक बड़ी खबर सामने आ रही है जिसमे आपको बतादें कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने साफ कर दिया है कि भूमि, लॉ ऐंड आर्डर और पब्लिक ऑर्डर को छोड़ अन्य सभी मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा। फैसले को पढ़ते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय है।
Table of Contents
Whatsapp Group join |
Please Join Whatsapp Channel |
Please Join Telegram channel |
अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा
वहीँ दूसरी और देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि निर्वाचित सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण जरूरी है। सीजेआई ने कहा कि बेंच जस्टिस अशोक भूषण के 2019 के फैसले से सहमति नहीं है कि दिल्ली के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सरकार की कार्यकारी शक्ति पब्लिक ऑर्डर, भूमि और पुलिस के तीन विषयों तक विस्तारित नहीं होगी, जिन पर केवल केंद्र के पास विशेष कानून बनाने की शक्ति है। आईएएस और दिल्ली में तैनात जॉइंट कैडर के अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा।
ये भी पढ़ें – सचिवालय
सरकार की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य होंगे
एलजी उन सभी मामलों के संबंध में दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य होंगे जिन पर दिल्ली सरकार को कानून बनाने का अधिकारा है। उपराज्यपाल सेवा के मामलों में दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह से बंधे रहेंगे। चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्यों के पास भी शक्ति है लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति संघ के मौजूदा कानून के अधीन है। यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ द्वारा अपने हाथ में न ले लिया जाए।
Read More : Web Series: दरवाजा बंद करके अकेले में देखे यह वेब सीरीज
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल
सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि यदि प्रशासनिक सेवाओं को विधायी और कार्यकारी डोमेन से बाहर रखा जाता है, तो मंत्रियों को उन सिविल सेवकों को नियंत्रित करने से बाहर रखा जाएगा जिन्हें कार्यकारी निर्णयों को लागू करना है।चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। बेंच के सदस्यों में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर विराम
आपको बताते चले कि बेंच ने केंद्र और सरकार की ओर से क्रमश: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की 5 दिन दलीलें सुनने के बाद 18 जनवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ का गठन, दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से जुड़े कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए किया गया था। पिछले साल 6 मई को देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मुद्दे को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर विराम लग सकता है।