बदायूं में शिवपाल यादव के बेटे आदित्य ने बचाई सपा की प्रतिष्ठा, भाजपा नहीं तोड़ पाई यह मिथक..

बदायूं में शिवपाल यादव के बेटे आदित्य ने बचाई सपा की प्रतिष्ठा, भाजपा नहीं तोड़ पाई यह मिथक.. बदायूं। जिले में बाहरी उम्मीदवार के जीतने का 40 साल से चला …

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बदायूं में शिवपाल यादव के बेटे आदित्य ने बचाई सपा की प्रतिष्ठा, भाजपा नहीं तोड़ पाई यह मिथक..

बदायूं। जिले में बाहरी उम्मीदवार के जीतने का 40 साल से चला आ रहा मिथक बरकरार रहा। मंगलवार को मतगणना के बाद स्थिति स्पष्ट हो गई। संसदीय सीट पर भाजपा जीत नहीं दोहरा सकी। वहीं सपा ने अपनी प्रतिष्ठा को बचा लिया। शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य ने अपने पहले लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। उन्होंने भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य 35067 मतों से हरा दिया।

बदायूं लोकसभा सीट में 40 साल से कोई स्थानीय उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका।वर्ष 2024 में भाजपा ने सैफई बनाम बदायूं के बहाने स्थानीय और बाहरी की बहस छेड़ी थी। इस मुद्दे को जनता ने नकार दिया और जातीय समीकरण का एक बार फिर सपा को फायदा हो गया। यहां से सपा के प्रत्याशी आदित्य यादव को जनता ने अपना सांसद चुना है।

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय बनाम बाहरी की बहस का चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ सका, जबकि इसे लेकर भाजपा के दिग्गजों मंच से मतदाताओं के अपीलें की थीं। यह भी कहा था कि अबकी सैफई वालों को नहीं स्थानीय उम्मीदवार दुर्विजय सिंह शाक्य को जिताएं पर यहां यादव मतदाता ने स्वजातीय उम्मीदवार सामने होने पर स्थानीय और बाहरी की बात को खारिज किया।

राह दिखाने वाले दुर्विजय बदायूं में फेल:-बदायूं में भाजपा प्रत्याशी दुर्विजय शाक्य की हार ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं, जिन पर आने वाले दिनों में भाजपा के चुनावी रणनीतिकार मंथन जरूर करेंगे। भाजपा के प्रत्याशी संगठन में ब्रज प्रदेश के संगठन अध्यक्ष भी थे। चूक किस स्तर पर हो गई, हार की असल वजह क्या रही, यह खुलकर भले ही सामने नहीं आ पाए, लेकिन हकीकत पर गौर जरूर होगा।
सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव के सामने हार का सामना करने वाले भाजपा के दुर्विजय शाक्य के बारे में भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान साफ कर दिया था कि यही स्थानीय प्रत्याशी हैं। आदित्य को तो बाहरी करार दे दिया था।
स्थानीय होने के नाते भाजपा प्रत्याशी और उनके रणनीतिकारों को स्थानीय स्तर के ही जिन मुद्दों को प्रमुखता से उठाना चाहिए था, उनमें विकास, महंगाई, छुट्टा पशुओं से किसानों को दिक्कत, बेरोजगारी, देहात क्षेत्र में सड़कों की मौजूदा स्थिति से लेकर चिकित्सकीय सेवाओं में खामियों पर छूने की कोशिश ही नहीं की गई थी। दूसरा यह कि कार्यकर्ताओं में भी पिछले दो लोकसभा चुनाव की तरह जोश नजर नहीं आया। इसका सीधा असर मतदान के प्रतिशत के गिरावट के रूप में सामने आया था।दरअसल, भाजपा प्रत्याशीदुर्विजय शाक्य को जिन दिनों बदायूं सीट से भाजपा ने प्रत्याशी घोषित किया, तब जिले में धारणा बनी कि वह खुद को संगठन का कुशल शिल्पकार साबित करने में किसी भी स्तर पर कमी नहीं छोड़ेंगे। फिर भी किसी स्तर पर चूक हो ही गई। 

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