Sam Bahadur Movie Review:सैम बहादुर फिल्म से विक्की कौशल का फिर चला जादू
Sam Bahadur Movie Review बनाने से पहले मेघना गुलज़ार ने सैम मानेकशॉ के बारे में पढ़ा जो सामने आया
Sam Bahadur Movie Review फिल्म सैम मानेकशॉ के पैदा होने से लेकर 1971 की जंग तक की कहानी दिखाती है कैसे उनका नाम सायरस से सैम पड़ा विभाजन के दौरान वो क्या कर रहे थे कश्मीर को इंडिया का हिस्सा बनाने में उन्होंने क्या भूमिका निभाई थी एंटी.नेशनल कहकर उन पर इंक्वायरी क्यों बिठाई गई 1962 में उनके सैंडविच की ब्रेड के बीच की स्टफिंग कम क्यों होती जा रही थी
कैसे वो आदमी पॉलिटिक्स और आर्मी को कोसों दूर रखता था अपने फौजियों के सम्मान के लिए नेता तक को झाड़ सकता था क्या हुआ जब उन्होंने कहा कि अगर मैं पाकिस्तानी आर्मी का जनरल होता तो 1971 की जंग पाकिस्तान जीतता फिल्म उनके लड़कपन से लेकर भारत के पहले फील्ड मार्शल बनने तक का सफर तय करती है
Sam Bahadur Movie Review हमने सैम मानेकशॉ के किस्से.कहानियां सुने हैं
कैसे वो एक कमरे में आते और तपाक से हर नज़र उन पर टिक जाती कैसे दिल खोलकर जीने में वो कोई संकोच नहीं करते थे कैसे उनकी ज़िंदगी के कैनवस को पूरा करने के लिए लार्जर दैन लाइफ रंगों की ज़रूरत पड़ती है मेघना गुलज़ार भी उन्हें इसी नज़र से देखती हैं फिल्म पूरे समय सैम को लेकर विस्मय में रहती है
चाहे फिर वो उनके डायलॉग के बाद आने वाला म्यूज़िक हो या उनके आसपास के फौजी हों जो उन्हें आंखें बड़ी कर के हैरानी से देखते हैं ये फिल्म की अपनी गेज़ या नज़र है एक बेहतरीन बायोपिक है पाकिस्तान में जन्मा एक लड़का विभाजन ने बुरी यादें दीं
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वहां की गई गलती के बाद खुद से आंखें नहीं मिला पाता अपने प्रायश्चित की ओर बढ़ता है इस पूरी जर्नी में हमने घटनाएं देखीं वो घटनाएं जिन्होंने मिलखा सिंह को श्फ्लाइंग सीख बनाया श्सैम बहादुर ऐसी घटनाओं से वंचित दिखती हैं ऐसे इवेंट्स नहीं दिखते जिन्होंने पारसी लड़के को इंडिया का पहला फील्ड मार्शल बनाया ऐसा महसूस होता है कि सैम के किस्से किसी किताब से निकालकर बस चिपका दिए गए यहां मेघना गुलज़ार का डायरेक्शन सिनेमा के मीडियम को पूरी तरह से फायदा नहीं उठाता
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Sam Bahadur Movie Review कॉन्फिडेंस से लबरेज़ है सैम मानेकशॉ की ज़िंदगी बड़ी और लंबी दोनों थीं
उस लिहाज़ से एक फिल्म में सबकुछ फिट नहीं किया जा सकता यही वजह है कि उनके शुरुआती सालों को कम स्पेस मिलता है फिल्म किसी भी तरह जल्दी.से.जल्दी 60 के दशक और 1971 की जंग तक पहुंचना चाहती है इस बीच उनकी पर्सनल लाइफ को थोड़ी जगह देने की कोशिश की गई खासतौर पर उनकी पत्नी सिलू के साथ बिताया गया
वक्त वो अपने नौकर स्वामी के साथ मज़ाक कर रहे हैं कुत्तों के दांत ब्रश कर रहे हैं सैम का व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि फिल्म उसी को कवर करने में मसरूफ दिखती है इसी के चलते हम कभी नहीं देख पाते कि वो कैसे पिता हैं या वो अपनी पत्नी के साथ शादी की सालगिरह कैसे मनाते हैं
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Sam Bahadur Movie Review विकी कौशल को पहले सीन में देखकर लगा कि क्या देव आनंद जैसा लहजा पकड़ने की कोशिश की गई है
अगर ऐसा होता तो किरदार को कैरिकेचर बनने में ज़रा भी देर नहीं लगती लेकिन किसी भी पॉइंट पर विकी कैरिकेचरिइश या मज़ाकिया किस्म के नहीं लगते उनको देखकर लगता है कि उन्होंने किरदार को समझा है उसके आत्मविश्वास को पूरी तरह खुद में आत्मसात किया है देखकर लगता है कि ये कॉन्फिडन्स पहले उनके सीने में उतरा उसके बाद वो उनकी चाल हाथों के हाव.भाव भौंहों में बहता चला गया विकी ने ऐसा किरदार निभाया जिसे आसानी से इम्प्रेशनेबल या प्रभावित हुआ जा सके उनकी नीली चमकीली आंखों को देखकर लगता है कि इस आदमी ने पहले ही सब कुछ ठान लिया है
Sam Bahadur Movie Review अब बस करने जा रहे हैं सैम के जिस एटिट्यूड की कहानियां हमने सुनी है विकी अपने किरदार को वो देते हैं
एक सीन है जहां सैम अपने घर लौटते हैं उनके कहने से पहले ही आपको पता है कि वो अपने साथ कोई बुरी खबर लाए हैं उस सीन से पहले हम सैम को अपने बच्चों के साथ समय बिताते नहीं देखते तब सैम अपनी सोती हुई बच्ची को देखता है उसके बगल में एक खिलौना रखता है ये सीन चंद पलों का है विकी यहां कुछ नहीं कहते लेकिन उनके माथे की शिकन से ही सब साफ हो जाता है
सान्या ने सैम की पत्नी सिलू का रोल किया वहीं ज़ीशान पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहया खान बने सैम और इंदिरा गांधी इस कहानी के दो सबसे मज़बूत स्तम्भ थे दोनों जब पहली बार आमने.सामने आते हैं ठीक उसी पॉइंट पर इंटरवल किया गया इंदिरा और सैम के किस्से इतिहास के स्टूडेंट्स को क्यों पढ़ाए जाते हैं
वो इन दोनों की केमिस्ट्री देखकर साफ हो जाएगा फातिमा ने अपनी डायलॉग डिलीवरी के ज़रिए इंदिरा का लहजा पकड़ने की कोशिश की है उन्होंने पॉज़ेस का सही इस्तेमाल किया है फिर आते हैं ज़ीशान अय्यूबण् पहली नज़र में वो पहचान में ही नहीं आते प्राॉस्थेटिक ने अपना काम कर दिया लेकिन ज़ीशान की परफॉरमेंस सिर्फ प्रॉस्थेटिक पर निर्भर नहीं करती उन्होंने डायलॉग और लाहौर वाले एक्सेंट पर काम किया है
He has 18 years of experience in journalism. Currently he is the Editor in Chief of Samar India Media Group. He lives in Amroha, Uttar Pradesh. For contact samarindia22@gmail.com