Delhi Police:दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सहसवान के निजी अस्पताल में मारा छापा… छापे के दौरान नकली नोटों का जखीरा बरामद   

Delhi Police बदायूँ।दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने नकली नोट छापने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया है।इस संबंध में गिरोह के तीन आरोपियों को अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पास से गिरफ्तार किया है।इनके पास से 50 लाख रुपये के नकली नोट बरामद हुए हैं। आरोपी पिछले 5 वर्षों से नकली नोटों के धंधे में थे और इन्होंने अबतक करीब 5 करोड़ रुपये के नकली नोट बाजार में चलाए हैं।

 

 

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Delhi Police नकली नोट छापने के लिए पूरा सेटअप बनाया हुआ था।

यह गिरोह दिल्ली/एनसीआर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और अन्य क्षेत्रों में नकली नोटों को खपा रहा था।आरोपियों में आसिफ अली, दानिश अली और सरताज खान शामिल हैं। ये तीनों बदायूँ जनपद के रहने वाले हैं। पुलिस ने तीनों के पास से नकली नोट और इन्हें बनाने का सेटअप जब्त कर लिया है।

 

आरोपियों में एक अंडर-ट्रेनिंग बीयूएमएस (बैचलर ऑफ यूनानी मेडिसिन्स एंड सर्जरी) की पढ़ाई करने वाला डॉक्टर और एक सीएससी केंद्र का मालिक शामिल है। इनके कब्जे से पचास लाख कीमत के 500 के नोट बरामद हुए।आरोपियों को हिरासत में लेकर उत्तर प्रदेश के बदायूं के सहसवान में छापेमारी की। वहां से कच्चा माल, उच्च गुणवत्ता वाले लैपटॉप, प्रिंटर और अन्य उपकरणों सहित नोट छापने वाले पूरे सेट-अप का खुलासा कर दिया।

 

Delhi Police आपको बता दे यह नकली नोटों का अवैध धंधा सहसवान नगर के चार नंबर चौकी पर स्थित मैक्स अस्पताल में तीसरी मंजिल पर चल रहा था

जिसकी भनक आज तक किसी को नहीं लगी हैरान करने वाली बात एक और भी है। इस धंधे के बारे में मकान मालिक तक के लिए नहीं पता जबकि यह मकान अब से 5 महीने पहले किराए पर दिया गया था आरोपियों ने बताया यह सहसवान क्षेत्र में चार नंबर चौकी के बराबर में एक निजी मैक्स अस्पताल में नकली नोट बनाते हैं। जहां Delhi Police स्पेशल सेल ने छापेमारी के दौरान कमरे से नकली नोट बनाने का सामान प्रिंटर लैपटॉप आदि बरामद हुआ नकली नोटों की गड्डिया भी मिली जिसे पुलिस ने जप्त कर लिया गया।

 

Delhi Policeआरोपी आसिफ अली का जन्म 1996 में उत्तर प्रदेश के बदायूं के सहसवान में हुआ था।

उनके पिता किसान और मां गृहिणी हैं। उसने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की। 2013 में 12वीं पास करने के बाद उसने बदायूं के उझानी में एक यूनानी चिकित्सा डॉक्टर के साथ काम करना शुरू किया। यहीं उसे दवाओं के बारे में पता लगा। 2016 में, उसने अपने पैतृक गांव में लोगों को दवाएं देना शुरू किया, लेकिन कमाई कम थी। इसके बाद उसने नोट छापने का काम शुरू कर दिया।

 

 

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