छात्रों के बढ़ते खुदकुशी के मामलों पर SC का बड़ा एक्शन, नेशनल टास्क फोर्स का गठन; 4 महीने में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश

नई दिल्ली: देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों, कोचिंग सेंटरों और हॉस्टलों में छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर SC ने गहरी चिंता व्यक्त की है। छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया है।

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जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि पिछले दो महीनों में कॉलेज हॉस्टलों में यौन शोषण, रैगिंग, भेदभाव और अन्य कारणों से कई छात्रों ने आत्महत्या कर ली है। SC ने 19 मार्च को गुजरात की लॉ यूनिवर्सिटी में एक छात्र द्वारा की गई आत्महत्या का विशेष उल्लेख किया।

बेंच ने आईआईटी पटना में पिछले महीने हुई इसी तरह की घटना का भी जिक्र किया, जहां एक छात्र ने पढ़ाई के दबाव में अपनी जान दे दी। इसके अतिरिक्त, ओडिशा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एक नेपाली छात्र की आत्महत्या का मामला भी सामने आया था, जिसने एक साथी छात्र पर यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया था। केरल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में रैगिंग के चलते एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी।

टास्क फोर्स का नेतृत्व SC के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एस रवींद्र भट करेंगे

SC  में शामिल जस्टिस आर महादेवन ने कहा, “हमें आत्महत्याओं के पैटर्न पर विचार करना होगा। यह चिंताजनक है कि बड़ी संख्या में छात्र भेदभाव, रैगिंग और यौन शोषण के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं।” उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालयों और छात्रों के अभिभावकों को मिलकर प्रयास करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु यह टास्क फोर्स बनाई गई है।

इस टास्क फोर्स का नेतृत्व SC के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एस रवींद्र भट करेंगे। टास्क फोर्स में उच्च शिक्षा विभाग के सचिव, सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव और कानून मंत्रालय के सचिव भी शामिल होंगे।सुप्रीम कोर्ट ने इस टास्क फोर्स को छात्रों की आत्महत्याओं के पीछे के कारणों का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए उठाए जाने वाले संभावित कदमों पर एक विस्तृत रिपोर्ट चार महीने के भीतर सौंपने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि 2023 में आईआईटी दिल्ली के हॉस्टल में भी दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद उनके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कैंपस में शोषण का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि मृतक छात्रों के माता-पिता ने शोषण के आरोप लगाए थे, तो पुलिस को प्राथमिकी (FIR) दर्ज करनी चाहिए थी।

केवल जांच के बाद मामले को बंद करना पर्याप्त नहीं था। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की जांच से केवल मौत का तरीका पता चलता है, जबकि आत्महत्या के पीछे के वास्तविक कारणों का पता नहीं चल पाता है।

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