Mumbai ( गिरजा शंकर अग्रवाल ) – मीरारोड माँ दुर्गा के भव्य आगमन का साक्षी बनने जा रहा है क्योंकि शारद परिवार लगातार तीसरे वर्ष दुर्गा पूजा का आयोजन कर रहा है – यह केवल अनुष्ठानों से परे एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा है जो परंपरा, संस्कृति और समुदाय को एक साथ पिरोती है। बंगाल की दालनबाड़ी शैली की एकचाला पूजा से जुड़ी यह पूजा बंगाल की धरोहर को नमन करती है, जिसमें आंगन की गर्माहट, परिवार की आस्था और उत्सव की भावना एकाकार हो जाती है।
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यह भक्ति संस्कृति में निहित है और पर्यावरण के प्रति जागरूक है। सचमुच एक ईको-फ्रेंडली उत्सव। मूर्तियों से लेकर पंडाल तक हर सजावट प्राकृतिक सामग्रियों से बनाई जाती है। जैसे जूट गमछा, पंखा और कुलो। बाँस का ढाँचा, प्राकृतिक रंग और पुन: उपयोग योग्य वस्तुएँ हर विवरण माँ दुर्गा की आराधना के साथ-साथ मदर अर्थ के प्रति सम्मान का संदेश देता है। कन्या पूजन की पवित्रता इस उत्सव का हृदय है कन्या पूजन, जहाँ वंचित परिवारों की छोटी बच्चियों को हमारे अपने बच्चों के साथ बैठाया जाता है और उन्हें देवी के जीवित रूप में पूजित किया जाता है।
folded hands से उन्हें प्रणाम किया जाता है, reminding us कि माँ दुर्गा हर बालिका, हर मासूम मुस्कान और हर उम्मीद की किरण में विराजमान हैं। पूजा से आगे भी हमारा प्रयास चलता रहता है। सदस्य हर साल अपने कपड़े RRR (Reduce, Reuse, Recycle) नामक NGO (काशी गाँव के पास) को दान करते हैं।
जिससे विविधता, समानता और समावेशिता की हमारी मूल्य भावना और मजबूत होती है। साथ होने का उत्सव बंगाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पूरे त्योहार में केले के पत्तों पर सामूहिक भंडारा (मा का प्रसाद) परोसा जाता है। यह केवल भोजन नहीं बल्कि एकता का प्रतीक है। जहाँ भक्तों की सेवा को देवी की सेवा माना जाता है। प्रतिमा बुकिंग से लेकर अंतिम विसर्जन और विजया तक हर क्षण एकता की गवाही देता है।
बच्चे महीनों पहले से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी करते हैं। बड़े बुज़ुर्ग स्नेह से मार्गदर्शन करते हैं।और हँसी-खुशी से भरा पंडाल एक परिवार की तरह जीवंत हो उठता है। हर शाम परिवारों की प्रस्तुतियों से दमकती है।कला और संस्कृति का उत्सव शारद परिवार का पंडाल संगीत, नृत्य, फैशन और भोजन से एक सांस्कृतिक रंगोली बन जाता है। जिसमें बंगाल की भव्यता और समावेशिता झलकती है। पंक्तिबद्ध स्टॉल एक पारंपरिक मेले की रौनक रचते हैं।
उद्घाटन की शाम को चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन होता है, जहाँ बच्चे अपनी कल्पनाओं को कागज़ पर उतारते हैं । भक्ति और रचनात्मकता का संगम जो आने वाली पीढ़ी में सांस्कृतिक गौरव के बीज बोता है। इस वर्ष उत्सव की शुरुआत बंगाल की सबसे प्राचीन लोक कला बाउल गान के विशेष प्रदर्शन से होगी। इन घूमंतू संतों की आत्मीय आवाज़ें वातावरण को भक्ति से भर देंगी और शंख-धाक की ध्वनि के साथ परंपरा, संस्कृति और भावनाओं का अद्भुत संगम बनेगा।
विदाई का सौंदर्य – sindoor खेला- जैसे ही त्योहार अपने समापन की ओर बढ़ता है, शारद परिवार का बहुप्रतीक्षित सिंदूर खेला होता है। सजी-धजी विवाहित महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जो प्रेम, समृद्धि और शक्ति का प्रतीक है। यह माँ दुर्गा को उनकी ससुराल कैलाश विदा करने का भावनात्मक क्षण होता है, जब वह अपनी मायके – पृथ्वी – से लौटती हैं।
Mumbai : उद्घाटन की शाम को चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन होता है, जहाँ बच्चे अपनी कल्पनाओं को कागज़ पर उतारते हैं
आँसुओं, रंगों और मंत्रोच्चारों से भरा यह पल नारीत्व का उत्सव भी है और इस वचन का स्मरण भी कि हर विदाई एक वापसी का वादा होती है। आमंत्रण – आइए, इस दुर्गा पूजा में हमारे साथ जुड़ें – दर्शक बनकर नहीं, परिवार बनकर। आपके बच्चों की कला, पंडाल में आपकी हँसी, ढाक की धुन में आपकी आवाज़ और सिंदूर खेला में आपके आँसू इस जीवंत परंपरा का हिस्सा बनें। हर प्रार्थना में उम्मीद गूँजेगी और हर दिल अच्छाई की बुराई पर विजय का उत्सव मनाएगा।

