Sambhal News: मौंत का कोल्ड स्टोर – हादसे की दर्दनाक कहानी, पति मलबे में दबा फोन पर चिल्लाता रहा, पत्नी चीखें सुनती रही…लेकिन कुछ नहीं कर सकी पति की थम गई सांसे-
Sambhal News: मौंत का कोल्ड स्टोर – हादसे की दर्दनाक कहानी, पति मलबे में दबा फोन पर चिल्लाता रहा, पत्नी चीखें सुनती रही…लेकिन कुछ नहीं कर सकी पति की थम गई सांसे-
बदायूँ। संभल के कोल्ड स्टोरेज का वो चैंबर…जो 14 लोगों की मौत का कारण बना। इस चैंबर को 6 महीने पहले ही आलू स्टोर करने के लिए बनाया गया था। यहां आलू जमा करने के लिए बोरियां लेकर किसान अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे थे। कोई 3 दिन से लाइन में लगा था, तो कोई 2 दिन से… इस बार आलू की पैदावार अच्छी हुई थी। इसलिए किसानों की लाइनें भी लंबी थी। बार-बार घर जाने और जगह न मिलने के झंझट से बचने के लिए किसान वहीं चैंबर के बाहर रुके हुए थे। घरों से लाया गया थोड़ा बहुत खाने का सामान भी साथ रखा हुआ था।एक हादसा और सब कुछ खत्म हो गया:- कोल्ड स्टोर में आलू भरने के इस इंतजार के बीच एक हादसा हुआ और सब कुछ खत्म हो गया। चारों तरफ चीख पुकार की आवाजें थीं। पुलिस प्रशासन ने कोल्ड परिसर को खाली करवा दिया। अब बस आवाजें आ रही थीं। बोरों के बीच दबे मजदूरों और किसानों की बचाओ-बचाओ की चीखे। कुछ लोग अंदर से फोन कर अपने घर वालों से कह रहे थे कि मैं यहां बोरों के बीच दबा हूं…मुझे बचाओ। अंदर से ही कोई अपनी मां को फोन मिला रहा था तो कोई भाई को। लेकिन ज्यादातर चीखें धीरे-धीरे बढ़ते समय के साथ शांत हो गईं और वो जिंदा नहीं निकल पाए।
हादसे में हुई है 14 की मौत, 11 की हालत गंभीर:- बता दें, यूपी के संभल में गुरुवार को बड़ा हादसा हो गया था। यहां आलू भंडारण के दौरान एक कोल्ड स्टोरेज का पूरा चैंबर गिर गया था। इस हादसे में 14 की मौत हो गई है। वहां 11 लोग गंभीर घायल हैं। हादसे के बाद NDRF, SDRF समेत प्रदेश के पुलिस प्रशासनिक अफसर मौके पर लोगों को बचाने का प्रयास कर रहे थे। हादसे ने पूरे जिले को हिला कर रख दिया था। सीएम ने मरने वालों को 2 लाख और घायलों को 50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया है।
अब पढ़िए उस पत्नी की कहानी, जिसका पति फोन पर बात करते-करते मर गया:- संभल में कोल्ड स्टोरेज हादसे में मरने वाले लोग किसान व मजदूर थे। जो आलू का काम करके अपना घर चलाते थे। ज्यादातर ऐसे थे, जिनके कंधे पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी। मरने वालों के परिजन यही कह कर रो रहे हैं कि हमने तो सही सलामत घर से भेजा था फिर भगवान ने ये क्या कर दिया? ऐसे ही परिवारों से भास्कर ने बात करने की कोशिश की…
पहले हम संभल के बर्रई गांव पहुंचे:- यहां के किसान राकेश की इस हादसे में मौत हुई है। उसका शव शुक्रवार सुबह मिला है। राकेश की 2 बेटी हैं। घर की स्थिति बहुत खराब है। जमीन किराए पर लेकर राकेश ने आलू की खेती की थी। वो पल्लेदारी का काम भी करता था। आलू की पैदावार अच्छी हुई थी इस बात से परिवार बहुत खुश था। राकेश की पत्नी भी मजदूरी करती है। 2 और 4 साल की बेटी पढ़ाई करती है।
हम किसानों की जान की कोई कीमत नहीं:- इस हादसे के बाद से राकेश के गांव में मातम पसरा है। गांव की महिलाएं राकेश की पत्नी मोरकली को संभाल रही हैं। गांव का माहौल इतना गमजदा है कि कोई भी बात करने से मना कर रहा है। इसी गांव के कुछ किसान इस हादसे में घायल भी हुए हैं। जिनके सही सलामत गांव वापस आने की दुआ लोग मांग रहे हैं। वहीं, गांव के दूसरे किसानों के अंदर इस हादसे को लेकर गुस्सा है। उनका कहना है कि इस देश में हम किसानों और मजदूरों की कोई कीमत नहीं है। ऐसे हादसे में हम मारे जाते हैं और हमारा परिवार जिंदगी भर रोता रहता है। लेकिन किसी को इन चीजों से फर्क नहीं पड़ता।
और पत्नी फूट-फूटकर रोने लगती हैं:- राकेश का घर मिट्टी का बना हुआ है। जिस पर छप्पर पड़ा हुआ है। थोड़ा सा हिस्सा ईंट का बना है। घर के बाहर खड़ी उसकी दो बेटियां रो रही हैं। वो दोनों अभी इस बात से अनजान हैं कि उनके साथ क्या हुआ है? वो बस अपनी मां को ऐसे रोते हुए देखकर परेशान हैं। हमने बहुत हिम्मत करके राकेश की पत्नी से बात करने की कोशिश की। थोड़ी देर बात करने के बाद वो फूट-फूटकर रोने लगती हैं।
मैं नंगे पैर ही घर से दौड़ते हुए निकल गई:- बस उसने रोते हुए इतना बोला कि मेरे पति फोन पर मुझसे बोल रहे थे मैं दब गया हूं…मैं दब गया हूं, बचा लो। कुछ चिल्लाने की हल्की-हल्की आवाजें आ रही थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, मैं नंगे पैर ही घर से निकल गई और कोल्ड स्टोर की ओर जाने लगी। कोल्ड स्टोर मेरे घर से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। फोन पर मेरे पति की हल्की-हल्की आवाज आ रही थी। मैं लगातार सुन रही थी। मैं कोल्ड स्टोर पर पहुंची। वहां अचानक से मेरे पति की आवाज आना बंद हो गई। मौके पर हर तरफ मलबा ही मलबा था। मैं अपने पति का नाम चिल्ला रही थी, लेकिन उनका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था। हर तरफ लोग भाग रहे थे। कोई किसी को ढूंढ रहा था तो कोई किसी को। हम लोगों को चैंबर के पास नहीं जाने दिया जा रहा था। वो लोग किसी गैस का नाम ले रहे थे। बोल रहे थे कि गैस फैली तो दिक्कत हो जाएगी। हम लोग दूर खड़े होकर अपनों के निकलने का इंतजार कर रहे थे।
मां का दर्द- अब मेरी बेटियां क्या करेंगी:- पूरी रात वहीं खड़े-खड़े निकल गई। दूसरी सुबह मेरे लिए मनहूस बनकर आई। कुछ देर बाद कोई मेरे पति का नाम पुकार रहा था। मुझे लगा वो बाहर आ गए, लेकिन फिर उसने मुझे बताया, तुम्हारे पति का शव मिला है। पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है। वहीं से जाकर शव ले लेना। उस लड़के की बातें मुझे चुभ रही थी। एक पल में मेरी जिंदगी उजड़ गई थी। समझ नहीं आ रहा था किसको फोन करूं, किससे बात करो। गांव के कुछ लोग मेरे साथ थे, जो मुझे पकड़कर ले गए। उसके बाद मुझे घर पर छोड़कर वो लोग पोस्टमॉर्टम हाउस चले गए। ये फसल हमारे परिवार के लिए बहुत खराब साबित हुई। अब मेरी बेटियां क्या करेंगी? उनको तो पता भी नहीं है कि अब उनके पापा कभी वापस नहीं आएंगे।
इससे आलू सड़ जाता, कम से कम बेटा तो जिंदा होता आज:- राकेश के बाद हमने कैथल गांव के रामवीर की बुआ वीरवती से बात की। रामवीर की भी इस हादसे में मौत हो गई है। वहीं रामवीर का भाई लापता है। रामवीर की बुआ का कहना है, हमसे तो हमारा सहारा छिन गया। इससे अच्छा तो सारे आलू सड़ जाते। कम से कम आज बेटा तो जिंदा होता। कैसा दिन दिखाया है भगवान ने हमें, जिसको हाथों से पाला आज उसका शव लेकर घर जा रहे हैं। भतीजे की मौत से उनको गहरा सदमा पहुंचा है। वीरवती बताती हैं कि 28 साल का था रामवीर। अभी 2 साल पहले ही उसकी शादी की है। 1 छोटी बेटी भी है उसकी। घर में उसकी पत्नी से बोलकर आए हैं, रामवीर को लेकर आएंगे। अब कौन सा मुंह लेकर उसके सामने जाए। वो बेचारी इतनी छोटी सी उम्र में विधवा हो गई। बेटी के सिर से बाप का साया उठ गया। हे भगवान..ये कैसा दिन दिखाया है हमें।
16 मार्च की वो सुबह जो 14 परिवारों के लिए काल बन गई उस व्यक्ति की बात पढ़िए, जिसने चैंबर को गिरते हुए देखा
किसान चन्द्रशेन ने दैनिक भास्कर को बताया, सुबह के साढ़े 11 बजे होंगे…हम लोग सुबह ही आलू जमा करने चैंबर आए थे। हमारा गांव पास में ही था इसलिए सुबह आए थे। कुछ किसान तो यहां रुके भी हुए थे। वो लोग हमसे बोले अभी आधे घंटे में स्टोर पर काम शुरू होगा। मेरा भतीजा भी अपना आलू लेकर स्टोर करवाने आ रहा था। मैं उससे फोन पर बात करते-करते चैंबर से कुछ दूर निकल गया। मुझे उससे बात करते-करते 5 मिनट ही हुए थे कि कुछ बहुत तेज गिरने की आवाज आई। वो धमाका इतना तेज था कि कुछ देर तक तो मुझे कुछ सुनाई ही नहीं दिया। मेरे सामने पूरा चैंबर गिर रहा था। चारों ओर बस मलबा ही मलबा हो गया था।बस आवाज ही आ रही थी, कोई दिख नहीं रहा था:- मैं तो ठीक से अपनी आंख तक नहीं खोल पा रहा था। किसी तरह अपने गमछे से मिट्टी को हटाते हुए मैं आगे बढ़ा। ठीक से कुछ दिख ही नहीं रहा था। कुछ और साथी भी मेरे साथ में अंदर गए। हवा में इतनी ज्यादा मिट्टी और कंकड़ थे कि हम लोगों का मुंह और आंख खोलना भी मुश्किल हो गया था। कुछ देर बाद जब मिट्टी बैठी तो सामने देखकर हम लोग डर गए। सब कुछ दब चुका था। कुछ भी नहीं बचा था। लोगों के चिल्लाने की बस आवाजें आ रही थीं लेकिन कोई दिख नहीं रहा था। जहां कुछ देर पहले लोगों की भीड़ लगी हुई थी वहां बस मलबा ही मलबा दिख रहा था। कुछ आलू के बोरे बाहर पड़े हुए थे। हम लोग पहले उस तरफ भागे जहां का मलबा हमें हिलता हुआ दिख रहा था। इसी बीच किसी ने पुलिस को भी जानकारी दे दी। मलबा इतना ज्यादा था कि किसी को भी निकालना मुश्किल हो रहा था। हम लोगों के हाथ छिल गए थे लेकिन फिर भी हम किसी को बचा नहीं पाए थे। बाद में पुलिस और उनके साथ कुछ लोग बहुत सारी मशीनें लेकर आए थे। तब कुछ लोगों को निकाला गया।
हर इंसान किसी न किसी को बचाने की कोशिश कर रहा था:- बचाव कार्य में लगे एनडीआरएफ के टीम लीडर विकास कुमार ने बताया, हम लोग 16 मार्च को करीब 3 बजे घटना स्थल पर पहुंचे। हमारे सामने जो सीन था वो बहुत भयानक था। मौके पर मौजूद हर इंसान किसी न किसी को बचाने की कोशिश कर रहा था। हम लोग बिना समय बर्बाद किए काम में जुट गए। हमारे सामने बड़ी समस्या ये थी कि जिनको बचाना था वो सबसे नीचे दबे हुए थे। लोगों के ऊपर आलू के बोरे थे, बोरे के ऊपर लकड़ी की पट्टियां और उसके ऊपर चैंबर की दीवार। हमें लोगों की आवाजें आ रही थी लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि कहां से कौन बोल रहा है। कई लोग तो मदद मांगते-मांगते ही मर गए। कहीं किसी का हाथ दिख रहा था तो कहीं किसी का पैर…लेकिन इन लोगों को खींच कर निकालना मुमकिन नहीं था।
कोई बेटे को बचाने के लिए बोल रहा तो कोई पति को:- हम लोगों ने पहले वहां फोकस किया जहां का मलबा कम था। मशीनों से मलबा हटाने की कोशिश की। पहले बोरों के ऊपर से छत का मलबा हटाया। ऐसा करते समय हमारे सामने एक चुनौती ये भी थी कि कहीं किसी इंसान को मशीन न लग जाए। इसलिए ज्यादा अंदर तक मशीन को नहीं डाल सकते थे। हम लोग मशीन और डॉग की मदद से ये पता कर रहे थे कि मलबे में कहां कोई इंसान दबा है। जिन लोगों को हम लोगों ने निकाला उनकी हालत देखकर बहुत बुरा लग रहा था। वहीं मौके पर किसानों के परिवार वाले बार-बार आकर हम लोगों के हाथ जोड़ रहे, पैर पकड़ रहे…कोई कह रहा हमारे बेटे को बचा लो तो कोई पति को बचाने की गुहार लगा रहा। वहीं कोई भाई को बचाने के लिए बोल रहा। ऐसे में हमारे लिए रेस्क्यू करना और मुश्किल हो रहा था। इसीलिए पहले गांव वालों से एरिया खाली करवाया गया ताकि सही से बचाव कार्य किया जा सके। एसडीएआरएफ और लोकल पुलिस भी पूरी तरह मुस्तैद थी।
संभल के 11 लोग और बदायूं जिले के 3 लोगों की गई जान- मरने वालों का नाम और पता
1-रोहताश पुत्र भूरे, उम्र 28 वर्ष, निवासी एतौल, सम्भल।
2-राकेश पुत्र चंद्रपाल, उम्र करीब 30 वर्ष, निवासी बर्रई, सम्भल।
- इस्तियाक पुत्र रशीद, उम्र करीब 32 वर्ष, निवासी मई, सम्भल।
- प्रेम पुत्र मोहनलाल, उम्र करीब 45 वर्ष, निवासी कैथल, सम्भल।
- भूरे पुत्र भगवानदास, उम्र करीब 32 वर्ष, निवासी एतौल, सम्भल।
- सोमपाल पुत्र ब्रह्मचारी, उम्र करीब 45 वर्ष, निवासी बझेड़ा, बदायूं।
- सतीश पुत्र रामस्वरूप, उम्र करीब 26 वर्ष, निवासी एतौल, सम्भल।
- शिशुपाल पुत्र बाबूराम, उम्र करीब 28 वर्ष, निवासी, कैथल, सम्भल।
- सूरजपाल पुत्र नंदराम, उम्र करीब 30 वर्ष, निवासी एतौल, सम्भल।
- दिलशाद पुत्र कल्लू, उम्र करीब 35 वर्ष, निवासी एत्मादपुर, बदायूं।
- राजकुमार पुत्र भोजराज, उम्र करीब 28 वर्ष, निवासी कैथल, सम्भल।
- प्रमोद पुत्र देवीदास, उम्र 28 वर्ष, निवासी एतोल, सम्भल।
- सूरजपाल पुत्र छत्रपाल, उम्र 30 वर्ष, निवासी कैथल, सम्भल।
- रामवीर पुत्र राजेंद्र, निवासी कैथल, जनपद सम्भल।