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PG Medical Admissions: सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा महाराष्ट्र में सेवारत अधिकारियों के लिए 20 फीसदी कोटा

Maharashtra PG Medical Admissions: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में सेवारत अधिकारियों के लिए 20 प्रतिशत का कोटा बरकरार रखा। कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के बाद यह फैसला किया है।

Maharashtra PG Medical Admissions: उच्चतम न्यायालय ने राज्य में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए सेवारत अधिकारियों को 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के फैसले को गुरुवार को बरकरार रखा। इससे पहले बुधवार को भी इस मामले पर सुनवाई हुई थी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की इस दलील को स्वीकार करना कठिन है कि बीच में ही नियमों में बदलाव के कारण सरकार का प्रस्ताव चालू शैक्षणिक वर्ष में लागू नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि बंबई उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है।

वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने रखा पक्ष
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दूसरे दौर के बाद नहीं भरी गई कोई भी स्नातकोत्तर मेडिकल सीट सामान्य श्रेणी में जाएगी। शुरुआत में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने पक्ष रखा कि सेवारत उम्मीदवारों के लिए आरक्षण को बीच में पेश किया गया था, जो शीर्ष अदालत के एक फैसले के खिलाफ है, जिसमें कहा गया था कि प्रवेश प्रक्रिया के बाद नियमों को नहीं बदला जा सकता है।

मेधावी उम्मीदवारों के लिए ठीक नहीं कोटा

उन्होंने कहा कि सेवा अधिकारियों के लिए राज्य सरकार का 20 प्रतिशत कोटा प्रदान करने का निर्णय मेधावी उम्मीदवारों के लिए सही नहीं था। ग्रोवर ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई डेटा एकत्र नहीं किया है। इस तथ्य से स्पष्ट है कि पीजी के लिए 1,416 सीटों में से 286 सीटें इन-सर्विस कोटा के लिए उपलब्ध थीं, लेकिन केवल 69 उम्मीदवार नीट पीजी के लिए उपस्थित हुए।

राज्य सरकार के वकील की दलीलें

महाराष्ट्र की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ अभय धर्माधिकारी ने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा कि प्रवेश के नियमों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। धर्माधिकारी ने कहा कि संविधान पीठ के फैसले के बाद सेवारत उम्मीदवारों के लिए आरक्षण बहाल कर दिया गया था। शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ कुछ उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया था।

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