देवभूमि (उत्तराखंड)

पांच केदारों में से एक केदार के साल भर नहीं होते कपाट बंद

One of the five Kedars, the doors of Kedar are not closed throughout the year.

आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे पंच केदारों में से एक कल्पघाटी में स्थित कल्पेश्वरमंदिर में भगवान शिव की (कल्प) जटा की पूजा होती है और यह एकमात्र ऐसा केदार है, जो पूरे सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है. मंदिर तक गुफा पार कर पहुंचा जाता है.

आपको बतादें कि उत्तराखंड में चमोली जिले में पांच केदारों में से एक केदार कल्पेश्वर मंदिर स्थित है. जहां भगवान शिव के केश की पूजा की जाती है. समुद्र तल से 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह छोटा सा मंदिर है और माना जाता है कि यहां भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी. इसीलिए इस मंदिर में शिव की जटाओं की पूजा होती है. भगवान शिव को जटेश्वर नाम से भी संबोधित किया जाता है.

जानिए क्या है कल्पेश्वर मंदिर की मान्यता?

आपको बताते चले कि ऐसा माना जाता है कि कल्पेश्वर मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था और यह वह स्थान है, जहां महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों को आत्मग्लानि हुई तो वे पाप से मुक्ति पाने को भगवान शिव के दर्शन के लिए यात्रा पर निकल गए. पांडवों की कई कोशिशों के बाद भी शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए क्योंकि शिव पांडवों को कुलहत्या का दोषी मानते थे. बाद में पांडव केदार की ओर मुड़ गए और पांडवों को देखते ही भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए.

भगवान शिव ने दर्शन न देने के लिए बैल का रूप धारण कर लिया और पशुओं के झुंड में शामिल हो गए. पांडवों को आकाशवाणी से यह जानकारी प्राप्त हो जाती है कि पशुओं के झुंड में भगवान शिव हैं. तब भीम ने विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए. जहां से और सभी पशु तो चले गए लेकिन भगवान शिव बैल रूप में पैरों के नीचे से निकलने के लिए आगे नहीं बढ़ पाए. और इतने में ही भीम शिव (बैल) पर झपट पड़े और तब से केदारनाथ धाम में बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजी जाने लगी.

इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि जब शिव बैल रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ का ऊपरी भाग नेपाल के काठमांडू के पशुपतिनाथ में निकला और वहां भी भगवान शिव का विशाल मंदिर स्थित है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मध्य महेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई और यहीं पांच केदारों के नाम से जाने जाते हैं.

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