महादेवी वर्मा की कविता महिला उत्पीड़न के विरुद्ध सामाजिक बदलाव का आह्वान :मुजाहिद चौधरी

*महादेवी वर्मा की कविता महिला उत्पीड़न के विरुद्ध सामाजिक बदलाव का आह्वान ,,,, मुजाहिद चौधरी*
यह कविता मैं कहीं नहीं पढ़ पाया । आभारी हूं सोशल मीडिया पर सक्रिय एक संघर्षशील,कर्मठ, हिम्मत और हौसले की प्रतिमूर्ति डॉ. दीपिका माहेश्वरी सुमन जी का जिन्होंने यह कविता मुझे उपलब्ध कराई । इसमें कोई शक नहीं कि इस कविता को पढ़कर मैं क्या हर कोई हैरान हो सकता है । अगर महादेवी वर्मा जी की अन्य कृतियों पर प्रकाश डाला जाए तो निसंदेह यही कहा जाएगा कि इस प्रकार की रचनाएं महादेवी वर्मा ही लिख सकती हैं । निश्चित तौर पर यह महादेवी वर्मा का उत्कृष्ट प्रयास है । वह कहती हैं, *मैं हैरान हूं । मैं हैरान हूं यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली ? तुलसी दास पर ,जिसने कहा ,
ढोल ,गंवार ,शूद्र, पशु, नारी,ये सब ताड़न के अधिकारी।
मैं हैरान हूं ,किसी औरत ने क्यों नहीं जलाई “मनुस्मृति”
जिसने पहनाई उन्हें गुलामी की बेड़ियां ? मैं हैरान हूं ,किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा ? उस “राम” को जिसने गर्भवती पत्नी सीता को ,परीक्षा के बाद भी निकाल दिया घर से बाहर धक्के मार कर। किसी औरत ने लानत नहीं भेजी, उन सब को, जिन्होंने ”औरत को समझ कर वस्तु” लगा दिया था दांव पर । होता रहा “नपुंसक” योद्धाओं के बीच समूची औरत जाति का चीरहरण ?
महाभारत में ? मै हैरान हूं यह सोचकर ,किसी
औरत ने क्यों नहीं किया ?
संयोगिता अंबा -अंबालिका के दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध आज तक ! और मैं हैरान हूं ,इतना कुछ होने के बाद भी, क्यों अपना “श्रद्धेय” मानकर पूजती हैं मेरी मां – बहनें उन्हें देवता – भगवान मानकर? मैं हैरान हूं, उनकी चुप्पी देखकर । इसे उनकी सहनशीलता कहूं या अंध श्रद्धा या फिर मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा ?”
यह कविता अपने समय की मशहूर कवियत्री लेखिका महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाओं में से एक है । लेकिन इस रचना पर कभी कोई समीक्षा या टिप्पणी देखने और पढ़ने में नहीं आई । या यूं कहा जाए कि उनकी इस कविता को छुपा कर रखा गया । उन्होंने देश, समाज, काल, व्यक्तित्व,प्रकृति और प्रेम सहित अनेकों विषयों पर उत्कृष्ट रचनाएं लिखकर हिंदी भाषा की सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान दिया । समाज सुधार की एक शानदार कोशिश की । सही को सही और गलत को गलत ठहराने की हिम्मत की ।
यह कविता उनकी समस्त रचनाओं से बिल्कुल अलग है ।
जो उनकी हिम्मत,हौसले और सत्य को कहने की उनकी क्षमता और महिलाओं के प्रति सामाजिक नजरिए का तथा महिलाओं को अपने सम्मान की रक्षा हेतु आंदोलित करने का सर्वोत्तम प्रयास है । एक ओर यह कविता महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित किए जाने, उनके शोषण को समाज के सामने प्रदर्शित करने का प्रयास है । वहीं दूसरी ओर यह समाज से विशेषकर पुरुष वर्ग से एक अनुत्तरित प्रश्न है । हालांकि महादेवी वर्मा जी के समय से आज समय बहुत बदला है । महिलाओं को बहुत अधिकार और अवसर मिले हैं । महिलाओं के संरक्षण के लिए अनेकों कानून बनाए गए हैं,आयोगों की स्थापना की गई है । उनकी सुरक्षा, सम्मान, विकास और संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की गई है । उनको आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई है । लेकिन आज भी अधिकांश महिलाओं की स्थिति लगभग वैसी की वैसी ही है । बदलाव आया है लेकिन वह उतना नहीं है । क्योंकि मात्र कानून बनाने से, योजनाएं बनाने से किसी समाज का विकास नहीं किया जा सकता । किसी समाज का संरक्षण नहीं किया जा सकता । किसी समाज को सम्मान नहीं दिया जा सकता । बल्कि समाज के किसी अंग के संरक्षण,विकास और सहयोग के लिए सामाजिक नजरिए और सामाजिक बदलाव की आवश्यकता होती है ।
आज भी उच्च कोटि के लेखक ,कवि ,कवयत्री और साहित्यकार विभिन्न भाषाओं में अपना अपना योगदान प्रदान कर रहे हैं
। लेकिन महिलाओं के शोषण व उत्पीड़न को रोकने और उनको समाज में सर्वोत्तम स्थान प्रदान किए जाने हेतु अभी भी बहुत कुछ लिखने ,कहने और प्रयास करने की आवश्यकता है । अपनी इस महत्वपूर्ण कविता में महादेवी वर्मा ने औरत से ही सवाल किया है । यानी उनकी मंशा है कि अपने बदलाव के लिए स्वयं महिलाओं को आगे आना चाहिए । उनको सही को सही और गलत को गलत कहना चाहिए । अगर उनके साथ कहीं गलत हो रहा है तो उसका विरोध करना चाहिए । ग़लत के सामने समर्पण नहीं करना चाहिए । देश और दुनिया की महिलाओं को उनकी इस कविता को प्रेरणा मानकर अपने संरक्षण और सम्मान के लिए उठ खड़े होने की जरूरत है । एक सामाजिक आंदोलन प्रारंभ करने की आवश्यकता है । आइए मिलजुल कर महिलाओं को संरक्षण, उनका वांछित स्थान और सम्मान प्रदान करने का प्रयास करें और महादेवी वर्मा के सपनों को साकार कर अपनी श्रद्धांजलि दें ।
(मुजाहिद चौधरी एडवोकेट)
स्तंभ लेखक विश्लेषक कवि
हसनपुर, अमरोहा
chmujahid65@gmail.com