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जामा मस्जिद है या नीलकंठ मंदिर, 4 अक्टूबर को फिर होगी सुनवाई,अदालत ने दिया दावे की कॉपी मुस्लिम पक्ष को देने का आदेश

जामा मस्जिद है या नीलकंठ मंदिर, 4 अक्टूबर को फिर होगी सुनवाई,अदालत ने दिया दावे की कॉपी मुस्लिम पक्ष को देने का आदेश

जयकिशन सैनी

बदायूं की जामा मस्जिद में नीलकंठ महादेव मंदिर के मामले की सुनवाई टलने के आसार थे। वजह थी कि सिविल बार के अधिवक्ता हड़ताल पर थे। हालांकि दोनों पक्षों के अधिवक्ता अदालत में लंच के बाद पहुंचे और दिन में दोनों पक्षों की ओर से मूव की गई एप्लीकेशन अदालत ने देखीं। बाद में मुस्लिम पक्ष को दावे की कापी देने का आदेश अदालत ने देते हुए 4 अक्टूबर की तारीख मुकर्रर कर दी। पिछले दिनों कोर्ट ने जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी और अखिल भारत हिंदू महासभा के बीच दायर हुए वाद की सुनवाई के लिए 15 सितंबर की तारीख दी थी। मुस्लिम पक्ष इस परिसर को मस्जिद मान रहा है, जबकि हिंदू पक्ष इसे नीलकंठ महादेव मंदिर मानता है। इंतजामिया कमेटी के सदस्य व मुस्लिम पक्ष के वकील इसरार अहमद ने अदालत में सुबह अर्जी लगाई थी कि उन्हें हिंदू पक्ष द्वारा किए गए दावे की प्रति मुहैया कराई जाए। जबकि हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने अपनी अर्जी में यह स्पष्ट किया कि नोटिस के साथ इंतजामिया कमेटी समेत वक्फबोर्ड आदि को दावे की प्रति दी गई है। लंच के बाद दोनों पक्ष के वकील अदालत जा पहुंचे, यहां सुनवाई के बाद अदालत ने इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता की अर्जी स्वीकार की और दावे की प्रति उन्हें देने का आदेश दिया है।

हिंदू पक्ष के वकील बोले- गवर्नमेंट गजेटियर में इसके सबूत
मुकदमे के पैरोकार और हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश सिंह पटेल का दावा है कि यहां पहले मंदिर था। इसको लेकर कुछ और साक्ष्य भी मिले हैं, जिन्हें वह कोर्ट में रखेंगे। हिंदू पक्ष के वकील वेद प्रकाश साहू ने बताया, “गवर्नमेंट का गजेटियर साल 1986 में प्रकाशित हुआ था। इसमें अल्तमश ने मंदिर की प्रकृति बदलने का जिक्र किया है।” याचिका में पहले पक्षकार भगवान नीलकंठ महादेव को बनाया गया है।

मुस्लिम पक्ष के वकील बोले- सवाल दाखिल कर दस्तावेज अदालत से मांगेंगे
इंतजामिया कमेटी के सदस्य और मुस्लिम पक्ष के वकील इसरार अहमद सिद्दीकी का कहना है कि वह सुनवाई के लिए तैयार हैं। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने इंतजामिया कमेटी समेत वक्फ बोर्ड को नोटिस जारी किया था। नोटिस तामील हुए हैं या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। 15 सितंबर को ही पता लगेगा। अगर नोटिस तामिली की प्रक्रिया हो गई होगी, तो वो साक्ष्यों के साथ अपना पक्ष रखेंगे। दूसरे पक्ष ने किस आधार पर दावा किया है। इसका भी विधिक प्रक्रिया के तहत नकल सवाल दाखिल कर दस्तावेज अदालत से मांगेंगे, ताकि हम और मजबूती से अपना पक्ष रख सकें। इसरार ने कहा, “जामा मस्जिद शम्सी लगभग 840 साल पुरानी है। मस्जिद का निर्माण शमसुद्दीन अल्तमश ने करवाया था। कोई भी ऐसा गजेटियर नहीं है, जिसमें यह मेंशन हो कि यहां मंदिर था। यह मुस्लिम पक्ष की इबादतगाह है। यहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है। उन लोगों ने भी मंदिर के अस्तित्व का कोई कागज दाखिल नहीं किया है।”

अब जानिए आखिर क्या है मामला…
बदायूं रेलवे स्टेशन से 4 किमी दूर जामा मस्जिद है। मौलवी टोला इलाके की ये जामा मस्जिद देश की सबसे पुरानी और बड़ी मस्जिदों में शामिल है। इससे करीब 1.5 किमी दूर दरीबा मंदिर है। यहां पर शिवलिंग स्थापित है। नीलकंठ महादेव मंदिर को तोड़कर बनाई गई जामा मस्जिद का दावा करने वाले हिंदू पक्ष की मानें तो ये वही शिवलिंग है, जो पहले नीलकंठ महादेव मंदिर में स्थापित था। याचिकाकर्ता और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल का दावा है कि जामा मस्जिद परिसर हिंदू राजा महिपाल का किला था। 1175 में पाल वंशीय राजपूत राजा अजयपाल ने मंदिर की मरम्मत कराई थी। बाद में मुगल शासकों के समय नीलकंठ महादेव मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई गई थी। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को हटा दिया था। जिसे उस वक्त लोगों ने एक जगह स्थापित किया, जो आज पटियाली सराय में दरीबा मंदिर के नाम से जाना जाता है।

 

 

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