अगर आपके बच्चे को भी है यह बीमारी तो घबराएं नहीं, डॉ. अमोल गुप्ता ने दिए जरूरी सुझाव
अक्सर लोग बच्चों की बीमारियों के लेकर सजग रहते हैं जोकि जरूरी भी है।कई बार बच्चों में ऐसे लक्षण देखे जाते हैं जिनसे पेरेंट्स डर जाते हैं और तुरंत अस्पताल में बच्चों के इलाज के लिए पहुंच जाते हैं।ऐसे में जाने माने होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अमोल गुप्ता ने जरूरी टिप्स दिए।

विख्यात होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ अमोल गुप्ता ने बच्चों में नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी के लक्षण बताए हैं।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम वाले अधिकांश बच्चों में किडनी बायोप्सी की जरूरत नहीं पड़ती है।यदि डॉक्टर को बच्चों में कुछ असामान्य लक्षण जैसे जोड़ों में दर्द, टॉयलेट में खून, उच्च ब्लड प्रेशर या रोग के शुरुआत में गुर्दे में विकार पाए जाते हैं। जब बच्चा ठीक न हो रहा हो और स्टेरॉइड प्रतिरोधी नेफ्रोटिक सिंड्रोम होने का संदेह हो।तब ऐसी स्थिति में बच्चों में किडनी की बायोप्सी करना आवश्यक होता है।
यह कहना है डॉ राम निवास गुप्ता हॉस्पिटल के कुशल होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. अमोल गुप्ता का।
डॉ अमोल गुप्ता ने बताया कि नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों के अभिभावकों में यह हमेशा जानने की होड़ लगी रहती है कि उनके बच्चे इस बीमारी से कब तक ठीक हो सकेंगे। इस पर डॉ गुप्ता ने बताया कि स्टेरॉइड रेस्पॉन्सिव नेफ्रोटिक सिंड्रोम वाले अधिकांश बच्चो में बार-बार रिलेप्स होते है हालांकि जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं रिलेप्स की संभावना कम होती जाती है। यह देखने में आया है कि स्टेरॉइड रेस्पॉन्सिव नेफ्रोटिक सिंड्रोम वाले बच्चों में यह कम असर करता है।
घर पर उपचार के दौरान ऐसे रखें अपने बच्चे की निगरानी:-यूरिनरी डिपस्टिक का उपयोग पेशाब में प्रोटीन की निगरानी और घर पर गुणवत्ता की निगरानी के लिए किया जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक बच्चे का एक शीशी में पेशाब इकट्ठा करें।एक डिपस्टिक लें और कुछ सेकंड के लिए इस स्टिक को शीशी में डाल दें। अगर इस डिपस्टिक का रंग पीला रहता है तो इसका मतलब है कि बच्चे के पेशाब के जरिए प्रोटीन की मात्रा नहीं निकल रही है और अगर इस का रंग हरा हो जाता है तो इसका मतलब बच्चे के पेशाब के जरिए भारी मात्रा में प्रोटीन की निकासी हो रही है जो कि बच्चों में नेफ्रोटिक सिंड्रोम का सबसे बड़ा लक्षण है।
(डा.रामनिवास गुप्ता हॉस्पिटल निकट रोडवेज बस स्टैंड के सामने)
रिपोर्ट-जयकिशन सैनी (समर इंडिया)
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