बदायूं जामा मस्जिद मामले में सात नवंबर को फिर होगी सुनवाई, नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा, शासकीय सिविल अधिवक्ता ने केस खारिज करने की मांग की।
बदायूं जामा मस्जिद मामले में सात नवंबर को फिर होगी सुनवाई, नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा, शासकीय सिविल अधिवक्ता ने केस खारिज करने की मांग की।
जयकिशन सैनी (समर इंडिया)
बदायूं। नीलकंठ महादेव मंदिर बनाम जामा मस्जिद वाले प्रकरण में अब सात नवंबर को अगली सुनवाई होगी। शुक्रवार को सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट के न्यायिक अधिकारी ने मामले में गजट प्रकाशित करने का आदेश दिया है। इधर, शासकीय सिविल अधिवक्ता की ओर से मुकदमा पोषणीय न होने के चलते खारिज करने की मांग अदालत से की गई है। शुक्रवार को सिविल जज सीनियर डिविजन विजय कुमार गुप्ता की कोर्ट में जामा मस्जिद बनाम नीलकंठ महादेव के मुकदमे में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आदेश दिया कि विपक्षियों को जानकारी के लिए इसका गजट प्रकाशित कराया जाए। वहीं शासकीय सिविल अधिवक्ता ने मुकदमे पोषणीय न होने के चलते खारिज करने की मांग की। नीलकंठ महादेव पक्ष के अधिवक्ताओं ने जामा मस्जिद की ओर से दिये गये मामलों पर आपत्ति दाखिल की। सिविल जज सीनियर डिविजन विजय कुमार गुप्ता ने मामले में सुनवाई के बाद अगली तारीख सात नवंबर नियत की।
अब तक मामले मे ये हुआ:- 15 सितंबर को इस मामले पर सुनवाई होनी थी कि केस सिविल कोर्ट बदायूं में चलाया जाये या नहीं। जिस पर जामा मस्जिद पक्ष की ओर से आपत्ति दाखिल करते हुए कहा गया कि उन्हें मुकदमे की कॉपी प्राप्त नहीं कराई गयी है। कोर्ट ने नीलकंठ महादेव पक्ष के अधिवक्ताओं से विपक्षी को मुकदमे की कॉपी देने के आदेश दिये। नीलकंठ महादेव पक्ष के अधिवक्ताओं ने उस दिन कोर्ट मे आपत्ति दाखिल की थी। अब तक जामा मस्जिद पक्ष की ओर से मूल वाद में कोई आपत्ति दाखिल नहीं की गयी है। सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई के लिए चार अक्टूबर की तारीख तय की। चार अक्टूबर को जज अवकाश पर थे। जिसके चलते सुनवाई की 21 अक्टूबर लगा दी गयी थी। अब मामले की अगली सुनवाई सात नवंबर को होगी।
हिंदू पक्ष का ये था अदालत में दावा:- अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल ने अदालत में दावा किया था कि शहर में स्थित जामा मस्जिद पूर्व में राजा महीपाल का किला था। यहां नीलकंठ महादेव का मंदिर था। मस्जिद की मौजूदा संरचना नीलकंठ महादेव के प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई है। मुगल शासक शमसुद्दीन अल्तमश ने इसे ध्वस्त करके जामिया मस्जिद बना दिया। इसका नक्शा समेत सरकारी गजेटियर भी कोर्ट में पेश किया गया है। वहीं मुस्लिम पक्ष के वकील असरार अहमद ने दावे को बेबुनियाद बताया है।
रजिया सुल्तान का इससे कोई मतलब नहीं है। अगर बदायूं दर्पण ने लिख दिया कि रजिया सुल्तान का जन्म उसमें हुआ तो यह सत्य नहीं है। असली बात यह है कि यह मुकदमा चलने लायक नहीं है। वादी पक्ष के पास कुछ नहीं है। इसलिए वह ऐसी बातें ढूंढकर ला रहे हैं। आज तो केवल वादी पक्ष ने शासकीय अधिवक्ता के एतराज का जवाब दाखिल किया था। – मोहम्मद असरार अहमद, वकील, इंतजामिया कमेटी जामा मस्जिद