Haridwar: एक बार फिर गरमाया तीन दशक पुराना ज्योतिषपीठ गद्दी का विवाद, जानें क्या है पूरा मामला
देश में चार पीठ हैं। इनमें उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिष पीठ, दक्षिण भारत के चिकमंगलूरु श्रृंगेरी पीठ, ओडिशा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ और गुजरात के द्वारका स्थित शारदा पीठ हैं। ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो पीठों (ज्योतिष और शारदापीठ) के शंकराचार्य थे। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी के लिए ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद ने 28 सालों तक लड़ाई लड़ी।
Haridwar : ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी का विवाद तीन दशक पुुराना है। गद्दी के लिए स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बीच 28 साल तक खींचतान चली। 2017 में सुप्रीम कोर्ट से स्वामी स्वरूपानंद के हक में फैसला आने पर शंकराचार्य की गद्दी का विवाद तो थम गया, लेकिन मठ परिसर स्थिति माता अन्नपूर्णा मंदिर स्वामी वासुदेवानंद के अधीन ही रहा।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु की गद्दी पर बैठने से फिर विवाद शुरू हो गया। देश में चार पीठ हैं। इनमें उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिष पीठ, दक्षिण भारत के चिकमंगलूरु श्रृंगेरी पीठ, ओडिशा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ और गुजरात के द्वारका स्थित शारदा पीठ हैं।
ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो पीठों (ज्योतिष और शारदापीठ) के शंकराचार्य थे। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी के लिए ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद ने 28 सालों तक लड़ाई लड़ी। हरि सेवा आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी हरिचेतानंद बताते हैं ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य विष्णुदेवानंद के ब्रह्मलीन होने के बाद गद्दी को लेकर विवाद शुरू हुआ।
8 अप्रैल 1989 को ज्योतिष पीठ के वरिष्ठ संत कृष्ण बोधश्रम की वसीयत के आधार पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने खुद को शंकराचार्य घोषित कर दिया। वहीं ज्योतिष पीठ के वरिष्ठ संत शांतानंद ने 15 अप्रैल 1989 को स्वामी वासुदेवानंद को शंकराचार्य की पदवी दी। एक ही पीठ के दो-दो शंकराचार्य बन गए।
स्वामी वासुदेवानंद ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने 5 मई 2015 को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के हक में फैसला दे दिया। स्वामी वासुदेवानंद सुप्रीम कोर्ट चले गए। सुप्रीम कोर्ट ने भी 25 नवंबर 2017 को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के हक में फैसला दिया। इसी फैसले के बाद स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो पीठों के घोषित शंकराचार्य बने। ज्योतिष पीठ की संपत्ति काफी अधिक है। पुराने मठ परिसर स्थित मां अन्नपूर्णा का मंदिर है, जो स्वामी वासुदेवानंद के अधीन है। उसकी देखरेख उन्हीं के शिष्य करते हैं।
11 सितंबर को जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ब्रह्मलीन हो गए। दूसरे दिन उनके शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिष पीठ और स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारका की शारदा पीठ के शंकराचार्य के रूप में अभिषिक्त कर दिया। 15 अक्तूबर को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बतौर शंकराचार्य ज्योतिष पीठ पहुंचे। 17 अक्तूबर को जोशीमठ रविग्राम के मैदान में श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य विधु शेखर भारती और द्वारका पीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती की मौजूदगी में धर्म महासम्मेलन में उनका अभिनंदन समारोह हुआ।
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